Indian Railways News => | Topic started by puneetmafia on Jul 23, 2012 - 00:01:45 AM |
Title - रेवेन्यू लाओ, ट्रेन में जाओPosted by : puneetmafia on Jul 23, 2012 - 00:01:45 AM |
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अमृतसर : आम तौर पर रेलवे स्टेशनों पर 'आराम' की नौकरी करने वाले टीटीई स्टाफ को अब 'टारगेट' दे दिया गया है। उन्हें हर हालत में हरेक माह रेलवे के लिए तीस हजार रुपये रेवेन्यू जुटाना ही होगा। फिरोजपुर रेल डिवीजन ने 76 टीटीई स्टाफ को ट्रेनों में ड्यूटी लगा दी है। यह वह टीटीई स्टाफ हैं, जिनका रेवेन्यू प्रति माह तीस हजार से कम था। अब यह टीटीई स्टाफ अलग-अलग रुटों पर ट्रेनों में चेकिंग करेंगे और रेलवे के लिए रेवेन्यू जुटाएंगे। फिरोजपुर रेल डिवीजन के डीआरएम एनसी गोयल के आदेशों की कापी अलग-अलग रेलवे स्टेशनों के पास आ चुकी है। इनमें कई ऐसे नाम भी शामिल हैं, जिनकी गिनती 'दबंग' टीटीई स्टाफ के रूप में होती है। फिरोजपुर रेल डिवीजन से अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, फिरोजपुर व जम्मू रेलवे स्टेशन आदि से यह तब्दीलियां हुई हैं। इस फेरबदल से एक तरफ ऐसे 'नेटवर्क' की तोड़ने की कोशिश भी की गई है जो कि अपने 'चहेते' स्टाफ को 'मालदार' ट्रेनों में भेजा करते थे। अमृतसर-दिल्ली के बीच चलने वाली कई ऐसी ट्रेनें हैं जिन्हें स्टाफ की भाषा में 'मलाई' कहा जाता रहा है। लेकिन अब इस मलाई ट्रेनों में 'मलाई काटना' दूर की बात दिखने लगी है। अमृतसर व लुधियाना के बीच चलने वाली शताब्दी ट्रेनों में अब तक कई बार स्पेशल चेकिंग के दौरान 'डब्लयू टी' (विद-आउट-टिकट) पकड़े जाते रहे हैं। कई बार दिल्ली विजिलेंस अधिकारियों ने सीधे तौर पर छापामारी करके 'डब्लयू टी' पकड़ा है। ऐसे में फिरोजपुर रेल डिवीजन के डीआरएम के सख्ती के बाद ऐसे मामलों में निरंतर कमी आ रही है। उधर, 76 टीटीई को चेकिंग पर लगाए जाने को लेकर विभाग से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आई हैं। एनआरएमयू के पदाधिकारी विवेक महाजन व ईश देवगन कहते हैं रेलवे के लिए रेवेन्यू जुटाने का काम देना बेहतर है, लेकिन किसी स्टाफ को टारगेट करके ऐसा नहीं होना चाहिए। अधिकांश उन स्टाफ को ट्रेनों में चेकिंग के लिए लगाया गया है जो कि पहले ओपन स्क्वायड टीम में शामिल थे। एक सीट के लिए लगती है 'बोली' अगर आप परिवार के साथ ट्रेन में कहीं जा रहे हैं और आपकी सीट वेटिंग है तो आप भी शायद जेब नहीं बल्कि सीट का ही ख्याल करेंगे। एक सीट के लिए आप भी मुंह मांगे पैसे देने से पीछे नहीं हटेंगे। यही सब कुछ होता है चलती ट्रेनों में। एक सीट के लिए पैसों की बोली लगती है। |