Indian Railways News => | Topic started by railgenie on Jul 18, 2012 - 03:18:56 AM |
Title - जनता के संघर्ष की हुई जीतPosted by : railgenie on Jul 18, 2012 - 03:18:56 AM |
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फाजिल्का : राजनीतिक स्वार्थ, देरी, भ्रष्टाचार और लालफीताशाही भले ही आज देश में हावी है, लेकिन जब जनता जागती है तो सब हवा हो जाता है। इसकी ताजा मिसाल है फाजिल्का-अबोहर के बीच नवनिर्मित ट्रैक पर गाड़ियों का चलना। एकजुट हुए लोगों के समक्ष देश के सबसे बड़े विभाग को आखिरकार झुकना ही पड़ा। हालांकि यह संघर्ष बामुश्किल दो माह ही चला, लेकिन इस ट्रैक को स्थापित करने और गाड़ियां चलाने की मांग करीब छह दशक पुरानी है। यह मांग हालांकि 2004 में तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार ने फाजिल्का-अबोहर ट्रैक का शिलान्यास करके पूरी कर दी थी। लेकिन पहले तो ट्रैक 2007 में पूरा होने की बजाय 31 मार्च 2010 में पूरा किया गया। इस दौरान कभी किसानों को अधिग्रहीत की गई भूमि का मुआवजा देने, कभी तकनीकी कारणों तो कभी फंड के अभाव की समस्याएं पेश आई। इसके चलते करीब 90 करोड़ रुपये में बनने वाली यह रेल लाइन पूरी होते होते रेलवे का ढाई अरब से भी ज्यादा पैसा खर्च हो गया। लेकिन निर्माण पूरा होने के 14 महीने बाद भी इस लाइन पर गाड़ियां नहीं चलाए जाने से दोनों नगरों के बाशिंदों में रेलवे के प्रति आक्रोश बढ़ गया। मई माह में अबोहर की इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने धरने प्रदर्शनों का दौर शुरू कर दिया। उसके 15 दिन बाद फाजिल्का में भी इस ट्रैक पर गाड़ियां चलाने की मांग को लेकर सांझा मोर्चा ने भूख हड़ताल शुरू कर दी, जो लगातार 45 दिन चलती रही। इस दौरान फिरोजपुर मंडल के डीआरएम ने कभी प्यार से लोगों को धरने बंद करने के लिए कहा तो कभी सख्त भाषा इस्तेमाल करते हुए उनके प्रदर्शन को तवज्जो न देने की बात कही। वहीं सांझा मोर्चा ने रेल विभाग को गाड़ियां न चलाए जाने बारे कानूनी नोटिस भी जारी किया। फाजिल्का के विधायक एवं कैबिनेट मंत्री सुरजीत ज्याणी रेलमंत्री मुकुंद राय से दिल्ली जाकर मिले। उन सभी प्रयासों का असर है कि 11 व 12 जुलाई को कमिश्नर रेलवे सेफ्टी ने रेल का निरीक्षण कर ट्रैक को दुरुस्त बताया और रेलवे ने 14 जुलाई को ट्रैक पर गाड़ियां चलाने की घोषणा कर दी। |