Indian Railways News => | Topic started by riteshexpert on Jul 30, 2012 - 06:00:07 AM |
Title - 50,000 मकान गिरें तभी चलेगी मेट्रो ट्रेनPosted by : riteshexpert on Jul 30, 2012 - 06:00:07 AM |
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कानपुर। शहर में मेट्रो चलाने के ख्वाब फिलहाल तो पूरे होते नहीं दिख रहे। शासन स्तर पर मेट्रो चलाने की तैयारी की जा रही है लेकिन शहर के अफसर इस परियोजना को लेकर असमंजस में हैं। दरअसल रेलवे के जिस पुराने ट्रैक पर मेट्रो योजना के लिए पिलर खड़े करने की चर्चा चल रही है वहां दशकों से अतिक्रमण है। रेलवे ट्रैक के इन हिस्सों में 50,000 से अधिक पक्के मकान बने हैं जिन्हें हटाना नाकों चने चबाने के बराबर है। मिलों के शहर कानपुर में कभी कोयला पहुंचाने के लिए रेलवे ने जगह-जगह पर पटरियां बिछाई थीं। शहर के अलग-अलग स्थान पर बिछे करीब साठ किलोमीटर लंबे इस ट्रैक के जरिए कोयला लदी ट्रेन सीधे मिलों तक पहुंच जाती थीं। बाद में मिलें बंद हुईं तो रेलवे ट्रैक पर अवैध कब्जे हो गए। यहां लोगों ने तीन-तीन मंजिल के मकान बना लिए हैं। बीते कई साल से कानपुर में यातायात की समस्या देखते हुए मेट्रो ट्रेन चलाने की योजना पर विचार चल रहा है। कई बार सर्वे भी हो चुका है। पहले से बिछे रेलवे ट्रैक पर खंबों बनाकर इनके ऊपर मेट्रो दौड़ाने की योजना बनी, हालांकि अवैध कब्जों के चलते अफसरों को यह संभव नहीं दिख रहा। केडीए उपाध्यक्ष राम मोहन यादव ने बताया पुराने ट्रैक पर करीब 50,000 स्थाई मकान बने हैं। सबसे बड़ी समस्या इन मकानों को हटाने की है। इसके लिए नगर निगम के पास न संसाधन है न ही टीम। रेलवे ट्रैक पर सर्वाधिक मकान ग्वालटोली और कर्नलगंज इलाके में हैं। एक मकान में दो से चार परिवार रह रहे हैं। इतने मकान हटाने से डेढ़ से दो लाख परिवार बेघर होंगे जिन्हें मकान देने की भी व्यवस्था नहीं है। यही वजह है मेट्रो परियोजना को लेकर नगर निगम और केडीए के अफसर असमंजस में हैं। |